ध्यान-अप्रयास, अनभ्यास से - ओशो
श्रीमती जया बहिन, प्रणाम। आपका स्नेह पूर्ण पत्र पाकर अनुगृहीत हूं। ध्यान कर रही है; यह आनंद की बात है। ध्यान में कुछ प...
श्रीमती जया बहिन, प्रणाम। आपका स्नेह पूर्ण पत्र पाकर अनुगृहीत हूं। ध्यान कर रही है; यह आनंद की बात है। ध्यान में कुछ प...
प्रिय जया वहिन, स्नेह। मैं आनंद में हूं। कितने दिनों से पत्र लिखना चाह रहा था पर अति व्यस्तता के कारण नहीं नहीं लिख सका। ...
प्यारी मौन्, प्रेम। परिवर्तन के अतिरिक्त और सभी कुछ परिवर्तित हो जाता है। वस, परिवर्तन ही एक शाश्वतता है। लेकिन, मनुष्य मन ...
प्यारी मौनू, प्रेम। अनासक्ति का संबंध वस्तुओं से नहीं, विचार से है। अनासक्ति का संबंध बाह्य से नहीं, अंतस से है। अना...
प्यारी मौनू, प्रेम। संन्यास का संकल्प शूभ प्रारंभ है। संकल्प के पीछे-पीछे आते है साधना-छाया की भांति ही। मन में भी ब...
प्रिय कृष्ण करुणा, प्रेम। प्रभू को खोज में अनंत आशा के अतिरिक्त और कोई पाथेय नहीं है। आशा अंधेरे में ध्रुव तारे की भांति ...
प्रिय कृष्ण करुणा, प्रेम। आत्म-निष्ठा से बड़ी कोई शक्ति नहीं है। स्वयं पर विश्वास की सुवास ही अलौकिक है। शांति, आनंद, सत्...
प्रिय योग चिन्मय, प्रेम । साधना का अर्थ है स्वभाव में डूबना-स्वभाव में जीना-स्वभाव ही हो जाना। इसलिए, विभाव की पहचान चा...
प्रिय योग चिन्मय, प्रेम। आदमी तथ्यों में नहीं, स्वप्नों में जीता है। और, प्रत्येक मन अपना एक जगत निर्माण कर लेता है, जो कि ...
मेरे प्रिय, प्रेम। जीवन के विरोध में निर्वाण मत खोजो। वरन जीवन को ही निर्वाण बनाने में लग जाओ। जो जानते हैं, वे यही करते है...
मेरे प्रिय, प्रेम। सत्य कहां है? खोजो मत। खोजने से सत्य मिला ही कब है? क्योंकि, खोजने में खोजने वाला जो मौजूद है। इसलिए, खो...
प्रिय योग लक्ष्मी, प्रेम। दमन आकर्षक बन जाता है। और निषेध निमंत्रण। चित्त के प्रति जागने में ही मुक्ति है। निषेध निरोध नहीं...
प्यारी योग लक्ष्मी, प्रेम। वीज ही वीज नहीं है। मनुष्य भी वीज है। वीज ही अंकुरित नहीं होते हैं। मनुष्य भी अंकुरित होते हैं। ...
प्रिय योग लक्ष्मी, प्रेम। विटगेंस्टीन ने कहीं कहा है : जो न कहा जा सके, उसे नहीं कहना चाहिए। (राज पिबी बंद दवज इमपक, उनेज द...
प्रिय योग भगवती, प्रेम। परमात्मा ही हमारी संपदा है। और किसी संपदा का भरोसा न करना। शेष सब संपत्तियां अंतत: विपत्तियां ही सि...
प्रिय योग भगवती, प्रेम। आस्तिकता अनंत आशा का ही दूसरा नाम है। वह धैर्य । वह है प्रतीक्षा। वह है जीवन लीला पर भरोसा । आस्तिक...
प्यारी भगवती, प्रेम। मनुष्य गुलाम है। क्योंकि, वह अकेला होने से भयभीत है। इसीलिए उसे चाहिए भीड़ संप्रदाय, संगठन । संगठन क...
प्यारी भगवती, प्रेम। पुराने की लीक छोड़ो। लीक पर सिर्फ मुर्दे ही चलते हैं। जीवन सदा नए की खोज है। जो निरंतर नया होने की क...
जयति को सप्रेम, सत्य को खोजना कहां है ? बस-खोजना है स्वयं में। स्वयं में स्वयं में स्वयं में वह वहां है ही। और जो उसे कहीं और खोज...
प्यारी जयति, प्रेम। सत्य आकाश की भांति है-अनादि और अनंत और असीम। क्या आकाश में प्रवेश का कोई द्वार है? तक सत्य में भी कैसे ...
मेरे प्रिय, प्रेम। सत्य तैरने से नहीं, डूबने से मिलता है। तैरना, सतह पर है। डूबना उन गहराइयों में ले जाता है जिनका कि कोई...
मेरे प्रिय, प्रेम। जीवन है अनंत रहस्य। इसलिए जो ज्ञान से भरे हैं, वे जीवन को जानने से वंचित रह जाते हैं। उसे तो जान पाते ...
मेरे प्रिय, प्रेम। मैं कहता हूं, मिटो ताकि हो सको। बीज मिटता है तब वृक्ष बनता है। बूंद मिटती है तो सागर हो जाती है। और मन...
मेरे प्रिय, प्रेम। संदेह नहीं तो खोज कैसे होगी? संदेह नहीं तो प्राण सत्य को जानने और पाने को आकुल कैसे होंगे? ध्यान रहे श्र...
पुराना चर्च - ओशो एक बहुत पुराने नगर में उतना ही पुराना एक चर्च था। वह चर्च इतना पुराना था कि उस चर्च में भीतर जाने में भी प्रार्थना करने ...