परमात्मा है-अभी और यहीं - ओशो
प्यारी जयति, प्रेम। परमात्मा दूर है; क्योंकि निकट में हमें देखना नहीं आता है। अन्यथा, उससे निकट और कोई भी नहीं...
प्यारी जयति, प्रेम। परमात्मा दूर है; क्योंकि निकट में हमें देखना नहीं आता है। अन्यथा, उससे निकट और कोई भी नहीं...
प्रिय सावित्री, प्रेम। सुरक्षा है ही नहीं कहीं-सिवाय मृत्यु के। जीवन असुरक्षा का ही दूसरा नाम है। इस सत्य की पहचान ...
प्रिय योग प्रेम। प्रेम। अस्तित्व है धूप-छांव। आशा-निराशा। सुख-दुख । जन्म-मृत्यु । अर्थात अस्तित्व है द्वैत । विरोधी ...
प्रिय कृष्ण चैतन्य, प्रेम। शक्ति को कब तक सोई रहने देना है? स्वयं के विराट से कब तक अपरिचित रहने की ठानी है? दुविधा ...
मेरे प्रिय, प्रेम। विचारों के प्रवाह में बहना भर नहीं। बस जागे रहना। जानना स्वयं को पृथक और अन्य। दूर और मात्र द्रष्...
मेरे प्रिय, प्रेम। नास्तिकता आस्तिकता की पहली सीढ़ी है। और अनिवार्य। जिसने नास्तिकता की अग्नि नहीं जानी है, वह आस्त...
मेरे प्रिय, प्रेम। प्रेम स्वप्न में भी भेद नहीं करता है। और वह प्रेम जो कि प्रार्थना भी है, उसमें तो भेद भाव का उपा...
मेरे प्रिय, प्रेम। प्रभु पल-पल परीक्षा लेता है। हंसो-और परीक्षा दो। वह परीक्षा योग्य मानता है, यह भी सौभाग्य है। और जल्दी ...
प्रिय योग यशा, प्रेम। वीज को स्वयं की संभावनाओं का कोई भी पता नहीं होता है, ऐसा ही मनुष्य भी है। उसे भी पता नहीं है...
प्रिय योग प्रिया, प्रेम। संन्यास में संसार अभिनय है। संसार को अभिनय जानना ही संन्यास है। फिर न कोई छोटा है, न वड़ा-न कोई ...
प्रिय आनंद मधु, प्रेम। समय पक गया है। अवसर रोज निकट आता जाता है। अनंत आत्माए विकल हैं। उनके लिए मार्ग बनाना है। इसलिए,...
प्रिय सोहन, स्नेह। इतनी ही रात्रि को दो दिन पूर्व तुझे चितौड़ में पीछे छोड़ आया हूं। प्रेम और आनंद से भरी तेरी आंखे...
चिदात्मन, स्नेह। साधना शिविर से लौटकर वाहर चला गा था। रात्रि ही लौटा हूं। इस बीच निरं तर आपका स्मरण बना रहा है। आपक...
प्रिय सोहनवाई, स्नेह। आपका अत्यंत प्रीतिपूर्ण पत्र मिला है। आपने लिखा है कि मेरे शब्द आपके कानों में गूंज रहे हैं। ...
प्रिय सोहन, प्रेम। कल आते ही तेरा पत्र खोजा था। फिर रविवार था तो भी राह देखता रहा! आ ज संध्या पत्र मिला है। कितने थ...
प्यारी सोहन, प्रेम। तेरा पत्र मिला है। दूब में उसी जगह बैठा था, जब मिला। उस समय क्या सोच रहा था, वह तो तभी बताऊंगा जब ...
पुराना चर्च - ओशो एक बहुत पुराने नगर में उतना ही पुराना एक चर्च था। वह चर्च इतना पुराना था कि उस चर्च में भीतर जाने में भी प्रार्थना करने ...